तंत्र में जिन्हें त्रिपुरसुंदरी भी कहा गया है, वह देवी षोडशी दश महाविद्याओं
में तीसरी महाविद्या हैं। इनकी कांति प्रातःकालीन उदय होते सूर्य के समान है।
प्रातः काल सूर्य उदय हुआ कि उसमें पारमेष्ठय, सोम यानी चन्द्रमा की आहुति हो
गई। रुद्र शान्त होकर शिव हो गए। इसी शिव भाव से पूर्ण सूर्य से विश्व का
पालन-पोषण एवं रक्षण होता है। पृथ्वी, अन्तरिक्ष और द्युलोकरूपी त्रैलोक्य का
तथा उसमें रहने वाली प्रजा का निर्माण होता है।
सूर्य पांचों दिशाओं में व्याप्त है। पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व
दिशा। इसी कारण सूर्यरूपी शिव पंचमुखी है। पंचमुखी शिव क्रमशः चतुष्कल,
अष्टकल, त्रयोदशकल, अष्टकल एवं पंचकल हैं। प्रातः से लेकर सायंकाल तक
शिव सूर्य की कला व दिशाओं के आधार पर पांच प्रकार की अवस्थाएं हैं।
प्रातःकाल चार कला, मध्याह्न तेरह कला, सायंकाल पांच कला रह जाती हैं।
पंचवक्त्र शिव के दस हाथ हैं और उनमें क्रमश: अभय मुद्रा, टंक, शूल, वज्र,
पाश, खड्ग, अंकुश, घण्टा, नाग और अग्नि आदि दस आयुध हैं। टंक से आग्नेय
ताप, शूल से वायव्य ताप, वज्र से ऐन्द्र (इन्द्र का) ताप, पाश से वारुण ताप (वरुण
का), खड्ग से चन्द्र शक्ति का, अंकुश से दिश्याहेति का (देशहित), नाग से
संचार नाड़ी (वायु) विषैली वायु का, अग्नि से प्रकाश रूपा दृष्टि का संकेत है।
इन्हीं पंचवक्त्र शिव की शक्ति का नाम ‘षोडशी‘ है। पंच कला, पंच अक्षर,
पंच आत्म-अक्षर और परात्पर शिव की समष्टि सोलह होने से ही इनका नाम
षोडशी नाम पड़ा है। ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, अग्नि, सोम-इन पांचों में इन्द्र रूप सूर्य
में ही षोडशी का प्रधान निवास है। भूः भुवः और स्वः ये तीनों लोक इसी शक्ति
से उत्पन्न हुए हैं। शरीर में मन, प्राण और वाक्शक्ति- इन तीनों की स्वामिनी हैं।
देवी षोडशी का नाम त्रिपुरा इसीलिए पड़ा है।
सूर्य का प्रकाश, चन्द्रमा का प्रकाश और अग्नि का प्रकाश-इन तीनों
प्रकाशों को प्रकाशित करने वाले तीन नेत्र हैं। सौर-शक्ति समस्त खगोल में व्याप्त
षोडशी है। खगोल चतुर्भुज है। इसी आधार पर चार भुजाएं हैं। प्रातःकाल का बालार्क(बाल सूर्य) इनकी साक्षात् प्रतिकृति है। सौर-शक्ति, आकर्षण शक्ति एवं
गुरुत्वाकर्षण-शक्ति के पाश से समस्त पृथ्वी आबद्ध है। इसी कारण ये अपने
क्रान्तिवृत्त में रहती हैं। हाथों में पाश का होना यही सूचित करता है।
समस्त ग्रह, नक्षत्र व चराचर जगत् पर ये अंकुश रखती हैं, यही बताने के लिए
उनके हाथ में अंकुश है। तीनों लोकों में व्याप्त, रुद्र के अन्न, वायु, वर्षा, तीन बाण
हैं। शर इन्हीं का सूचक है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, पालक विष्णु, संहारक रुद्र तथा खण्ड
प्रलय के कर्ता यम- ये चारों इनके अधीन हैं, अतएव ये ‘चतुर्वाहा‘ हैं।
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ब्रह्माण्ड पुराण में देवी षोडशी को ब्रह्मविद्या अथवा ब्रह्ममयी मोक्ष देने
वाली देवी कहा गया है। इन्हीं का दूसरा नाम श्री विद्या भी है। इनकी साधना से
साधक को शिवलोक की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि अनेक जन्मों की
उपासना तपस्या के फलस्वरूप इनकी उपासना का सौभाग्य प्राप्त होता है।
भगवती षोडशी की उपासना से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – इन चारों पदार्थों की
प्राप्ति होती है। मन्त्र का पुरश्चरण केवल सवा लाख मन्त्र जप का है। बारह हजार
पांच सौ हवन, बारह सौ पचास तर्पण, एक सौ पच्चीस मार्जन, दस-पन्द्रह ब्राह्मण
बालक-बालिकाओं का भोजन-पूजन। इस प्रकार पूरा पुरश्चरण लगभग एक
लाख चालीस हजार जप का है। हवन बारह हजार पांच सौ आहुतियों का न कर
सकें तो जितना कम करें उसके शेषांश का दस गुना जप करें। चालीस दिन का
पुरश्चरण करने का संकल्प करें तो प्रति दिन पैंतीस या चालीस माला नित्य जपें।
इक्कीस दिन का संकल्प करें तो अस्सी माला नित्य और अस्सी दिन का संकल्प
करें तो बीस माला नित्य का हिसाब बैठता है। जो भी संकल्प करें उसे प्रत्येक
अवस्था में नित्य दिन या रात में पूरा करना चाहिए।
षोडशोपचार पूजा, ध्यान, कवच पाठ के साथ मन्त्र काजप करना सर्वश्रेष्ठ होता है। जो साधक नित्य ये सब नहीं कर सकें तो प्रारम्भ,अन्त, हवन, मार्जन, तर्पण वाले दिन तो अवश्य पूरा पाठ करें। अन्य दिनों में षोडशोपचार, पंचोपचार या मानसोपचार पूजा व मन्त्र का जप करें।
प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर सफेद रंग के साफ नए धुले वस्त्र
पहनें। मौसम के अनुसार सूती, ऊनी वस्त्र धारण कर सकते हैं। इस पूजा में सभी
वस्तुएं श्वेत (सफेद) रंग की प्रयोग की जाती हैं। सफेद रंग का आसन, सफेद
पुष्प, सफेद रंग का ही नैवेद्य, फल, मिठाई, बरफी, लड्डू, बताशे आदि तथा
सफेद रंग की बाती का घी का दीपक, माला मोती की, चन्दन की, तुलसी की
सफेद रंग की होनी चाहिए। भगवती षोडशी का चित्र पूर्वाभिमुख रखकर स्वयं
उत्तर की ओर मुख करके बैठें।
पाठ के अनन्तर मन्त्र जप करें। षोडशोपचार पूजन “ॐ ह्रीं षोडश्यै नमः ” मन्त्र
के साथ करें। प्रत्येक उपचार से पहले इस मन्त्र को पढ़ें। जैसे “ॐ ह्रीं षोडश्यै
नमः आवाहनं समर्पयामि” आदि ।
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, धन सम्पदा के साथ वशीकरण की शक्ति प्राप्त
करने के लिए षोडशी महाविद्या की साधना एवं पूजन सर्वश्रेष्ठ है।
ध्यान
बालार्कयुततैजसां त्रिनयनां रक्ताम्बरोल्लासिनीं।
नानालडकृति राजमानवपुषं बालेन्दु युक् शेखराम् ॥
हस्तैरिक्षु धनुः सृणिं सुमशरं पाशं मुदा विभ्रतीं।
श्रीचक्र स्थित सुन्दरीं त्रिजगतामाधारभूतां भजे ॥
प्रातः काल के सूर्य के समान जिनका तेज है। मां के तीन नेत्र हैं। वह नाना
प्रकार के अलङ्कारों से सज्जित हैं। उनकी चारों भुजाओं में धनुष बाण, चाप, पाश
सुशोभित हैं। श्रीचक्र पर आसीन सौन्दर्य की देवी त्रैलोक्य की आधार जगन्माता
षोडशी देवी को मैं नमस्कार करता हूं, ध्यान करता हूं, उनका भजन करता हूं।
मंत्र
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः ॐ ह्रीं श्रीं कइल ह्रीं सकल ह्रीं सौः ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं
नमः ।
कवच
बालार्कमंडल भासां चतुर्बाहां त्रिलोचनाम् ।
पाशांकुशशरांश्चापान् धारयंतीम् शिवां भजे ॥
ॐ पूर्वे मां भैरवी पातु बाला मां पातु दक्षिणे ।
मालिनी पश्चिमे पातु त्रासिनि उत्तरेऽवतु ॥
ऊर्ध्व पातु महादेवि महात्रिपुरसुंदरी ।
अद्यस्तात पातु देवेशि पाताल तल वासिनि ॥
आधारे वाग्भवः पातु कामराजस्तथा हृदि ।
डामरः पातु मां नित्यं मस्तके सर्वकामदः ॥
ब्रह्मरंध्रे सर्वगात्रे छिद्रस्थाने च सर्वदा ।
महाविद्या भगवति पातु मां परमेश्वरि ॥
ऐं ह्रीं ललाटे मां पातु क्लीं क्लूं सश्चनेत्रयोः ।
नासायां मे कर्णयोश्च द्रीं हैं द्रां चिबुके तथा ॥
सौः पातु गले हृदये सह ह्रीं नाभिदेशके।
कलह्रीं क्लीं गुह्यदेशे स ह्रीं पादयोस्तथा ॥
सहीं मां सर्वतः पातु सकली पातु संधिषु ।
जले स्थले तथाऽकाशे दिक्षुराजगृहे तथा ॥
हुं क्षेमा त्वरिता पातु सहीं सकलीमनोभवा ।
हंसः पायां महादेवि परं निश्छल देवता ॥
विजया मंगल दूती कल्याणि भगमालिनि ।
ज्वाला च माजिनि नित्या सर्वदा पातु मां शिवा ॥