bhairvi

भैरवी

भगवती भैरवी दश महाविद्याओं में सर्वाधिक प्रबल विद्या हैं। इनकी साधना
द्वारा साधक समाज में सम्मानित स्थान तथा समान अधिकार प्राप्त करता है। ये भी
भगवती आद्याकाली का ही स्वरूप हैं। ये शत्रुओं का दलन करने वाली त्रिजगत्
तारिणी तथा षट्कर्मों में उपास्या हैं।
भगवती को त्रिपुर भैरवीभी कहा जाता है। ये कालरात्रि सिद्ध विद्या हैं।
इनके शिव दक्षिणामूर्ति (काल भैरव) हैं। हमारी इन्द्रियां, बल एवं आयु क्षीण हो
रही हैं। नष्ट करना रुद्र का काम है। यही यम कहलाते हैं। यम व अग्नि की सत्ता
दक्षिण दिशा में है। दक्षिण में वास होने से दक्षिणामूर्ति भैरव कालभैरव आदि नामों
से पुकारे जाते हैं। राजराजेश्वरी भुवनेश्वरी देवी जिन तीनों भुवनों की रक्षा करती
है त्रिपुर भैरवी नाम से भैरवी उनका नाश करती हैं। यदि छिन्नमस्ता परा डाकिनी
है, यह अपरा डाकिनी हैं।इनकी साधना हेतु साधक स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहनकर, पूजा-सामग्री
पास रखकर, आसन पर बैठें। आत्मशुद्धि द्वारा आसन-शुद्धि करें। सामने भैरवी
माता का चित्र किसी काठ की चौकी पर स्थापित करें और षोडशोपचार, पंचोपचार
या मानसोपचार से देवी की पूजा करें। पश्चात् ध्यान, कवच पाठके बाद मन्त्र जप करें।
मन्त्र व कवच का पाठ मूल रूप में ही होता है। मां भैरवी की पूजा में भी
लाल रंग के ही पदार्थों की पूजा-सामग्री, माला, पुष्प, धूप-दीप, नैवेद्य, आसन
तथा लाल वस्त्रों का ही प्रयोग होता है। पुष्पों में कमल के पुष्प मिल जाएं तो उत्तम
होते हैं। हवन में भी कुछ कमल पुष्पों की आहुति दें तो उत्तम है। पुरश्चरण दस
लाख मन्त्रों का है, मन्त्र सिद्ध होने पर सब प्रकार के शुभ मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं।
किन्तु यह तभी संभव है, जब पुरश्चरण आदि की क्रिया पूर्वोक्त ढंग से संपन्न
कर ली जाए।

ध्यान

उद्यद्भानु सहस्त्र कान्तिमरुण क्षौमां शिरोमालिकां

रक्तालिप्त पयोधरां जप वटीं विद्यामभीतिं वरां।

हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्रंnविलसद वक्त्रारविन्दश्रियं

देवीं बद्ध हिमांशु रत्न मुकुटां वन्देसुमन्दस्मिताम् ॥

अर्थात् भगवती त्रिपुर भैरवी के श्रीअङ्गों की आभा उषा काल के सहस्रों

सूर्यों के समान है। वह लाल रंग की रेशम की साड़ी बांधे हुए हैं। उनके गले में

मुण्डमाला शोभा पा रही है। उनके दोनों स्तनों पर रक्त चन्दन का लेप लगा है। वे

अपने कर-कमलों में जप-मालिका विद्या और अभय तथा वर मुद्राएं धारण किए

हुए हैं। तीन नेत्रों से मुखारविन्द की शोभा अनुपम है। उनके मस्तक पर चंद्रमा के

साथ रत्न जड़ित मुकुट भी है। कमलासन पर अवस्थित भैरवी देवी को मैं

नमस्कार करता हूं।

मंत्र

ॐ हस्त्रीं त्रिपुर भैरव्यै नमः ।

कवच

हस्त्रै मे शिरः पातु भैरवी भयनाशिनी।

हसकलरीं नेत्रे च हस्त्रैश्च ललाटकम् ॥

कुमारी सर्व गात्रे च वाराही उत्तरे तथा ।

पूर्वे च वैष्णवी देवी इन्द्राणी मम दक्षिणे ॥

दिग्विदिक्षु सर्वत्रैव भैरवी सर्वदावतु।

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्द्धिनी ॥

आयु रक्षतु वाराही धर्म रक्षतु वैष्णवी ।

यशः कीर्ति च लक्ष्मीं च धनं च विद्यां चक्रिणी ॥

पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्ग क्षेमकरी तथा ।

राजद्वारे महालक्ष्मी विजया त्रिपुर भैरवी ॥