इनका पूजनादि ध्यान करने से सर्वं भय पलायन कर जाते हैं
और चतुर्वर्गीय फलों की प्राप्ति होती है ।
॥ ध्यान ॥
क्षुत्क्षमा कोटराक्षी मसि मलिन मुखो मुक्त केशी रुदन्ती ।
नाहं तृप्ता वदन्ती जगदखिलमिदं ग्रासमेकं करोमि ॥
हस्ताभ्यां धारयन्ती ज्वलदनल शिखा सन्निभं पाश युग्मम् ।
दन्तंर्जम्बू फलाभैः परि हरतु भयं पातु मां भद्रकाली ॥
भद्रकाली क्षीण देहमयी है । इनके दोनों नेत्र कोटर में हैं। मुख
स्याहीवत् मलिन है। केश बिखरे हुये हैं और यह कहते हुये रुदन कर रही हैं कि मैं तृप्त नहीं हूं अतः समूची सृष्टि को एक ही ग्रास में खाजाऊँगी । इनके दोनों हाथों में अग्नि शिखा के समान प्रज्वलित दो पाश हैं। यह पके जामुन की भाँति कृष्ण वर्णा है । यह देवी मेरे समस्त भयों को दूर करे ।
भद्रकाली के मन्त्र–
इनकी उपासना करने से शीघ्र ही शत्रुओं का नाश हो जाता है
और समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है ।
इनके मन्त्रों का पुरश्चरण एक हजार आठ बार जप करने से
सम्पन्न हो जाया करता है ।
इनके निम्नलिखित दो मन्त्र हैं–
1. क्लीं क्लीं क्लीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं भद्र काल्यै क्लीं क्लीं क्लीं हूं हूं
ह्रीं ह्रीं स्वाहा ॥
2. हाँ कालि महाकालि किलि किलि फट् स्वाहा ॥