दस महाविद्याओं में सबसे अधिक प्रसिद्ध, प्रचलित, प्रभावी साधना बगलामुखी देवी की ही मानी जाती है। एकवक्त्र महारुद्र की शक्ति बगलामुखी देवी है। इस देवी शक्ति की आराधना करने वाला मनुष्य अपने शत्रु को मनमाना कष्ट पहुंचा सकता है और अपने ऊपर आए कष्टों का निवारण भी कर सकता है।
यौं तो बगलामुखी देवी की उपासना सभी कार्यों में सफलता प्रदान करती है, किन्तु विशेष रूप से युद्ध में, वाद-विवाद में, शास्त्रार्थ में, मुकदमे में, प्रतियोगिता में विजय प्राप्त करने के लिए, अत्याचारी को शत्रु को वश में करके विजय प्राप्त
करने के लिए, अधिकारी को अनुकूल बनाने के लिए, अत्याचारी को रोकने,सबक सिखाने के लिए देवी बगलामुखी का अनुष्ठान सबसे उपयुक्त समझा जाता है। असाध्य रोगों से छुटकारा पाने के लिए, बन्धन मुक्त होने के लिए, संकट से उद्धार पाने के लिए, नवग्रहों की शान्ति के लिए भी यह मन्त्र शक्तिशाली
है। मंत्र महार्णव के अनुसार इस मन्त्र का पुरश्चरण एक लाख मन्त्र जप का है।अन्य तंत्र ग्रन्थों में सवा लाख बताया गया है। मेरुतंत्र के अनुसार यह मंत्र दस हजार जप करने पर ही सिद्ध हो जाता है। नित्य नियमित संख्या में ही मंत्र का जप
करना चाहिए। दशांश हवन, तर्पण, मार्जन, ब्राह्मण कन्या भोजन करवाकर पूरा पुरश्चरण इक्कीस दिन में सरलता से हो सकता है।साधक को चाहिए कि वह देवी के चित्र को एक चौकी पर पूर्व की ओर मुख करके स्थापित करें। षोडशोपचार विधि से पूजन करें। स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। वस्त्र, आसन, माला, गन्ध अक्षत, पुष्प, फल आदि सभी पीले रंग के होने चाहिए।
बगलामुखी मन्त्त्र
ॐ ह्रीं भगवति बगलामुखी देवि सर्व-दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धि विनाशाय विना-
शाय ह्रीं ॐ स्वाह
बगलामुखी ध्यान
मध्ये सुधाब्धिमणिमण्डपरत्नवेदी
सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम् ।
पीताम्बराभरणमाल्याविभूषिताङ्ग
देवीं स्मरामि धृतमुद्गरवैरिजिह्वाम् ॥
जिह्वाग्रमादाय करण देवीं वामेन शत्रून् परिपीडयन्तीम् ।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बरायां द्विभुजां नमामि ॥
सुधासागर के मणिमय मण्डप में रत्ननिर्मित वेदी के ऊपर जो सिंहा-सन है, बगलामुखी देवी उसी सिंहासन पर विराजमान हैं। यह देवी पीतवर्ण और पीले वस्त्र धारण की हुई हैं, पीतवर्ण के गहने और पीतवर्ण की ही माला से विभूषित हैं, इनके
एक हाथ में मुद्गर और दूसरे हाथ में बैरी (शत्रु) की जिह्वा है। अपने बायें हाथ से शत्रु को पीड़ित कर रहीं हैं। ये बगला देवी पीतवस्त्र से आवृत और दो भुजावाली हैं।
कवच
शिरो मे पातु ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं पातु ललाटकम् ।
सम्बोधन पदं पातु नेत्रे श्री बगलानने ॥
श्रुतौ मम रिपूम्यात् नासिकान्नाशय इमम् ।
पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्याण्यन्तन्तु मस्तकम् ॥
देहि द्वन्द्वं सदा जिह्वां पातु शीघ्रं वचो मम ।
कण्ठ देशं स नः पातु वाञ्छितं बाहुमूलकम् ॥
कार्य साध्य द्वन्द्वन्तु करौ पातु सदा मम ।
मायायुक्ता तथा स्वाहा हृदयं पातु सर्वदा ॥
अष्टाधिक चत्वारिंशद्दण्डाढ्या बगलामुखी ।
रक्षा करोतु सर्वत्र गृहेऽरण्ये सदा मम ॥
ब्रह्मास्त्रारण्यो मनुः पातु सर्वांग सर्व सन्धिषु ।
मन्त्रराजः सदा रक्षां करोतु मम सर्वदा ॥
ॐ ह्ररीं पातु नाभिदेशं कटिं मे बगलाऽवतु ।
मुखीवर्णद्वयं पातु लिगं मे मुष्कयुग्मकम् ॥
जानुनी सर्वदुष्टानां पातु मे वर्णपञ्चकम् ।
वाचं मुखं तथा पादं षड्वर्णा परमेश्वरी ॥
जंघायुग्मे सदा पातु बगला रिपु मोहिनी ।
स्तम्भयेति पदं पृष्ठं पातु वर्णत्रयं मम ॥
जिह्वा वर्णद्वयं पातु गुल्फौ मे कीलयेति च।
पादोर्ध्वे सर्वदा पातु बुद्धिं पादतले मम ॥
विनाशय पदं पातु पादांगुल्योर्नखानि मे।
ह्ररीं बीजं सर्वदा पातु बुद्धीन्द्रियर्वचासि मे ॥
सर्वांगं प्रणवः पातु स्वाहा रोमाणि मेऽवतु ।
ब्राह्मी पूर्व दले पातु चाग्नेयां विष्णुवल्लभा ॥
माहेशी दक्षिणे पातु चामुण्डा राक्षसेऽवतु ।
कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता ॥
वाराही चोत्तरे पातु नारसिंही शिवेऽवतु ।
ऊर्ध्वम्पातु महालक्ष्मीः पाताले शारदाऽवतु ॥
इत्यष्टौ शक्तयः पातु सायुधाश्च सवाहनाः ।
राजद्वारे महादुर्गे पातु मां गणनायकः ॥
श्मशाने जलमध्ये च भैरवश्च सदाऽवतु ।
द्विभुजा रक्तवसना सर्वाभरण भूषिता ॥
बगलामुखी तंत्र प्रयोग
यहां भगवती के कुछ साधारण तंत्र प्रयोगों के बारे में बताया जा रहा है, जोसभी अत्यंत प्रभावकारी हैं और बगलामुखी का कोई भी साधक इन प्रयोगों को आसानी से कर सकता है। सभी प्रयोगों में मंत्र जप की अनिवार्यता है। यद्यपि देवी का मंत्र पीछे कई बार दिया जा चुका है। फिर भी केवल इसी विषय के पाठकों के
• ज्ञानार्थ मंत्र को पुनः दिया जा रहा है। मंत्र इस प्रकार है-
ओम् हलीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलयबुद्धिं विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा ।
→ बगलामुखी देवी के मंत्र का सवा लाख जप करके मधु, घृत व शक्कर मिलाकर, तिल या सरसों से हवन करने से अभीष्ट व्यक्ति वशीभूत हो जाता है।
→ दूध मिश्रित चावलों से हवन करने से धन-संपत्ति और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
■ तेल में भिगोकर नीम की पत्तियों के हवन से विद्वेषण कृत्य को सफल बनाया जा सकता है तथा तेल, नमक और हल्दी के हवन से स्तंभन होता है।
→ मंत्र का चार लाख जप करके दशांश हवन गुग्गुल तिल के द्वारा करने से जेल से छुटकारा मिलता है।
मंत्र का सवा लाख जप करने के बाद कुम्हार के चाक की मिट्टी, चार-पांच अंगुल की अरंड की लकड़ी और मीठा लाजा (मधु और शक्कर से बनाया हुआ भुने चावलों का लाजा) द्वारा हवन करने से शरीर के समस्त रोगों का निवारण
हो जाता है।
चार लाख जपोपरांत कनेर के पत्तों से उसका दशांश हवन करने से पुत्रकी प्राप्ति होती है।
→ अभिचार-प्रेमी साधक रात्रिकाल में मंत्र का दस हजार जाप करके हल्दी,हरताल, लवण, घृत, मधु, शर्करा व पीले पुष्पों द्वारा होम करे तो दुष्ट अभीष्ट व्यक्ति का वाक् स्तंभन होता है, उसकी बुद्धि भी नष्ट हो जाती है।
समस्त आपत्तियों का क्षणमात्र में नाश हो जाता है।
आपत्तियों के समय भगवती पीताम्बरा बगलामुखी के ध्यान मात्र से ही जो साधक भक्तिभाव से बाएं हाथ में पीले पुष्प बगलामुखी के चरणों में अर्पित करता है तथा पीठ ध्यान में तत्पर होता हुआ कुभक प्राणायाम से भूमि बीज
मंत्र लं का जप करता है, उसके शत्रु की वाणी एवं मुख स्तंभित हो जाता है।
बगलामुखी के मंत्र का जप एवं स्तोत्र का पाठ करने से शत्रु का दमन हे
जो साधक ‘बगला‘ नाम का सदा जप करता है, उसके शत्रुओं के
पीला वस्त्र धारण कर, पीले आसन पर विराजमान होकर एवं पीला चंदनलगाकर हल्दी की माला से भगवती पीतवर्णा का ध्यान तथा सिद्ध मंत्र कामनुष्य, पशु-पक्षी, स्थावर-जंगम आदि सभी का स्तंभन करने में समर्थ होता है।
ताड़पत्र, नमक और हल्दी की गांठों से हवन करने से शत्रु का स्तंभन
अंगार के धुएं, राई, भैंस का घृत और गुग्गुल – इन वस्तुओं से रात्रि में श्मशान की अग्नि में हवन करने से शत्रुओं का नाश होता है।
गिद्ध और कौए के पंख को सरसों के तेल में मिलाकर चिता की अग्नि में हवन करके स्तंभन हो जाता है।
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अनुष्ठान
दूब, गुरुच, धान का लावा, मधु, घृत और शक्कर से हवन करने पर रोगी साधक के समस्त रोग स्वतः नष्ट हो जाते हैं।
पर्वत के शिखर पर, घने वन में, नदी के संगम पर अथवा शिवालय में ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए बगलामुखी देवी के मंत्र का एक लाख जप करने से मस्त सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं।