धूमावती

दश महाविद्याओं में सातवीं विद्या देवी धूमावती अत्यंत प्रभावशाली हैं।
• सिद्धि-प्राप्ति के निमित्त इनकी साधना सदा रात्रिकाल में ही की जाती है। इन देवी का स्वरूप केवल अद्भुत ही नहीं, बड़ा विचित्र भी है। देवी का आकार नितांत स्थूल है। इनके केश सूखे एवं रूखे हैं। अत्यंत मलिन वेश है। इनका स्वरूप विधवा जैसा प्रतीत होता है। इसी स्वरूप से देवी का स्मरण अथवा ध्यान किया जाता है।देवी धूमावती की साधना के निमित्त पहले स्नानादि से निवृत्त होकर एवं साफ़-सुथरे वस्त्र धारण कर, भगवती धूमावती का चित्र किसी चौकी इत्यादि पर स्थापित करें। तदनंतर इनकी षोडशोपचार एवं पंचोपचार से पूजनक्रिया करें। एवं ध्यान के पश्चात् मंत्र जप एवं कवच आदि का
पाठ करें। वैसे तो साधारणतः सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति के लिए देवी की पूजा का विधान किया जाता है, किन्तु दरिद्रता का शमन करने, ऋण से मुक्ति एवं अपना धन, भूमि व हक पाने के लिए विशेष रूप से देवी की साधना की जाती है।
भगवती धूमावती के मूलमंत्र का पुरश्चरण आठ लाख जप का है। अस्सी हजार हवन की सामर्थ्य न हो तो मंत्र का जप दो गुना करना पड़ेगा। शेष विधि पूर्वोक्त हैं। हवन आदि क्रिया में केवल आक की समिधाओं का प्रयोग करना चाहिए। वस्त्र, आसन, पूजा का अन्य सामान जैसे-पत्र, पुष्प, गन्ध (सफेद रंग का चन्दन पिसा हुआ) धूप एवं दीप, नैवेद्य आदि सभी सफेद रंग के हों। माला तुलसी, मोती या आक की लकड़ी की होनी चाहिए।
विद्वेषण एवं उच्चाटन आदि कर्मों में धतूरे के फल, बीज एवं जड़ आदि का अथवा सफेद फूल वाली कटेरी के पत्ते, जड़ व समिधाओं का प्रयोग हवन में करें। सफेद तिलों के स्थान पर काले तिलों के शाकल्य का प्रयोग हवन में, उच्चाटन आदि कर्मों में करें। यों दरिद्रता आदि दूर करने जैसे कृत्यों में केवल सफेद तिलों का प्रयोग ही करना चाहिए।

ध्यान
विवर्णा चंचला कृष्णा दीर्घा च मलिनाम्बरा ।
विमुक्त कुन्तला रूक्षा विधवा विरल द्विजा ॥
काकध्वजरथारूढा विलम्बित पयोधरा ।
शूर्पहस्तातिरूक्षाक्षी धूमहस्ता वरान्विता ॥

प्रवृद्धघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा।
क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहास्पदा ॥
भगवती धूमावती का स्वरूप विवर्ण है, चंचल है और दीर्घ काया है,
वर्ण है। मैले फटे वस्त्र, विधवाओं जैसा वेश है, खुले हुए रूखे केश हैं। वह
काकपक्षी (कौवा) की ध्वजा वाले रथ में विराजमान हैं। ढीले-ढाले लटके हुए
स्तन एवं विरल दंतावली है। सूप जैसे हाथ और रूखे नेत्र हैं। दरिद्रता की देवी
भक्तों को वर तथा अभय देने की मुद्रा में बैठी हैं। रोग, शोक, कलह, दरिद्रता के नाश के लिए मां धूमावती का मैं ध्यान व नमस्कार करता हूं।
मंत्र
धूं धूं धूमावती ठः ठः ।
कवच
ॐ धूं बीजं मे शिरः पातु धूं ललाटं सदाऽवतु ।
धूमा नेत्रयुग्मं पातु वती कर्णौ सदाऽवतु ॥
दीर्घा तूदरमध्ये तु नाभि मे मलिनाम्बरा ।
शूर्पहस्ता पातु गुह्यं रूक्षा रक्षतु जानुनी ॥
मुखं पातु भीमाख्या स्वाहा रक्षतु नासिकाम् ।
सर्वविधाऽवतु कण्ठं विवर्णा बाहुयुग्मकम् ॥
चञ्चला हृदयं पातु धृष्टा पार्श्वे सदाऽवतु ।
धूमहस्ता सदा पातु पादौ पातु भयावहा ॥
प्रवृद्धरोमा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा ।
क्षुत्पिपासार्दिता देवीं भयदा कलह प्रिया ॥
सर्वांगे पातु मे देवी सर्वशत्रु विनाशनी ॥