दक्षिणा काली के मन्त्र
1.कीं हूँ ह्रीं।
2.क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा ।
3.क्रीं क्रीं क्रीं फट् स्वाहा ।
4.क्रीं हूं ह्रीं क्रीं हूँ ह्रीं ।
5.क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा :
॥ ध्यान ॥
चतुर्भुजा कृष्णा मुण्ड माला विभूषिताम् ।
खडगं च दक्षिणे पाणौ विभ्रतीन्दीवर द्वयम् ।
कर्त्री च खर्परं चैव क्रमाद वामेन विभ्रती ।
द्यां लिखन्ती जटामेकां विभ्रती शिरसा स्वयं ।
मुण्डमाला धरा शीर्षे प्रीवायामथ चापराम् ।
वक्षसा नाग हारं च विश्रती रक्तलोचना ।
कृष्ण वस्त्र धरा कटयां व्याघ्रजिन समन्वितां ।
वाम पाद शव हृदि संस्थाप्य दक्षिण पदम् ।
विलाप्य सिंह पृष्ठे तु लेलिहाना शबै स्वयम् ।
साट्टहासा महाघोर राव युक्ता सु भोषणा |
कालिका देवी चतुर्भुजा, कृष्ण वर्णा और मुण्ड माला से
हैं। दोनों दाहिने हाथों में ख़ड़ग और दो नीले कल तथा दोनों बायें हाथों में कैंची‘ और खर्पर लिए हैं । देवी की दो जटाओं में से गगन स्पर्शी है। सिर और गले में दो मुण्ड मालायें हैं और उनके वृक्ष पर नाग का हार शोभायमान हो रहा है। नेत्र लाल हैं। कहि में कृष्ण वस्त्र और व्याघ्र की खाल है । ये देवी शव के हृदय पर बायां पैर और सिंह की पीठ पर दायां पैर रखकर विराजमान है। मद्यपान करके तीव्र अट्टहास कर रही है। इनकी आकृति अत्यधिक भीषण है।