श्री भगवान विष्णु की शक्ति महालक्ष्मी है, किन्तु दस महाविद्याओं में जो
कमला नाम की महाविद्या है, वह सदाशिव पुरुष की शक्ति है। इसकी पूजा-
उपासना, साधना से वैभव, सम्पत्ति, धन-धान्य, यश व कीर्ति की प्राप्ति होती है।
कमला देवी की साधना आरम्भ करने के लिए पहले देवी का चित्र सामने
रखें। घर के एक कोने में पूजा-स्थान बनाया जा सकता है। पूजा का आरम्भ किसी शुभ मुहूर्त्त, पर्व, शुभ समय तथा शुभयोग में आरम्भ करना चाहिए। देवी के चित्र को साक्षात् कमला देवी ही मानकर उस चित्र की मानस उपचार, षोडशोपचार या पंचोपचार से पूजा करें।
नित्य पूजा में भगवती के चित्र का ध्यान करके मंत्र जप आरम्भ करें।
गिनती के लिए माला से जप करें और जितनी संख्या का नियम बनाया हो, वह
नियम अवश्य पूरा करें। पुरश्चरण में असली प्रभाव मन्त्र-जप का होता है। इस
देवी के मंत्र की संख्या सात लाख की है। इसी हिसाब से पुरश्चरण करना
चाहिए।
माला, आसन, वस्त्र व पूजा की सभी सामग्री लाल रंग की होनी चाहिए।
वस्त्र भी लाल रंग के ही धारण करें।
कवच में देवी से अपने शरीर के सभी अंगों की रक्षा करने की प्रार्थना की
जाती है और मां के विभिन्न नामों को गुणों व कर्म के अनुसार प्रणाम करके
अनुष्ठान को बाधारहित पूरा करने की विनती की जाती है।
जितना जप अभीष्ट है, उस संख्या को अनुष्ठान के दिनों से विभाजित करके
जो उपलब्धि हो, उतना जप नित्य अवश्य ही करना चाहिए।
भगवती कमला का चित्र चौकी पर रखकर ध्यान करें। देवी के चित्र का
मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। साधक स्वयं भी उत्तर की ओर
मुख करके बैठें। घृत का दीपक जलाएं। कमल पुष्प या लाल पुष्पों से देवी की
पूजा करें। नैवेद्य मिष्ठान का हो।
पूजा में बिना सिले वस्त्र पहनने का विधान है। जैसे धोती, चादर, गमछा
आदि। साधक लाल रंग के ऊनी सूती आसन पर बैठें। पद्मासन और सिद्धासन
इस क्रिया के लिए उत्तम आसन है। माला रुद्राक्ष, तुलसी, लाल चन्दन अथवा
लाल मनकों की उत्तम रहती है। पूजा अनुष्ठान काल में यम-नियम एवं ब्रह्मचर्य
से रहना चाहिए। मांस-मदिरा का सेवन भी नहीं करना चाहिए। भूमि पर शयन
करना चाहिए। साधनाकाल में मौन व्रत रखना चाहिए तथा मौनता भी बनाएं रखें।
ध्यान
कान्त्या काञ्चनसन्निभां हिमगिरि प्रख्यैश्चतुर्भिर्गजैः ।
हस्तोत्क्षिप्तहिरण्मया मृतघटै रासिच्यमानां श्रियम् ॥
बिभ्राणां वरमब्जयुग्ममभयं हस्तैःकिरीटोज्वलाम् ।
क्षौमा बद्ध नितम्ब बिम्ब ललितां वन्देऽरविन्दस्थिताम् ॥
अर्थात् महालक्ष्मी कमला देवी की आभा काञ्चन यानी स्वर्ण जैसी है। मां
की चार भुजाएं हैं। वह हिमालय की उपत्यका में बैठी हुई हैं। उनके दोनों ओर दो हाथी अपनी सूंड़ों में स्वर्णकलशों में अमृत जैसा जल भरे हुए माता का अभिषेक कर रहे हैं। देवी स्वर्ण के आभूषण पहने हुए हैं। कुण्डल, किरीट, करधनी, मुकट रत्न जड़ित और स्वर्ण के हैं। कमल पुष्पों का आसन है। वर अभय मुद्रा है। ऐसी देवी स्वरूपा महाविद्या कमला की मैं वन्दना करता हूं।
मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौः जगत्प्रसूत्यै नमः ।
कवच
ऐंकारो मस्तके पातु वाग्भवां सर्वसिद्धिदा ।
ह्रीं पातु चक्षुषोर्मध्ये चक्षुयुग्मे च शांकरी ॥
जिह्वायां मुखवृत्ते च कर्णयोर्दन्तयोर्नसि।
ओष्ठाधरे दन्तपङ्क्तौ तालुमूले हनौ पुनः ॥
पातु मां विष्णुवनिता लक्ष्मीः श्री विष्णुरूपिणी ।
कर्णयुग्मे भुजद्वन्द्वे स्तनद्वन्द्वे च पार्वती ॥
हृदये मणिबन्धे च ग्रीवायां पार्श्वर्योद्वयोः ।
पृष्ठ देशे तथा गुह्ये वामे च दक्षिणे तथा ॥
उपस्थे च नितम्बे च नाभौ जंघाद्वये पुनः ।
जानुचक्रे पदद्वन्द्वे घुटिकेऽङगुलिमूलके ॥
स्वधातु प्राणशक्त्यात्मसीमन्ते मस्तके तथा ।
सर्वांगे पातु कामेशी महादेवी समुन्नतिः ॥
पुष्टिः पातु महामाया उत्कृष्टिः सर्वदाऽवतु ।
ऋद्धिः पातु सदादेवी सर्वत्र शम्भुवल्लभा ॥
वाग्भवा सर्वदा पातु पातु मां हरगेहिनी ।
रमा पातु महादेवी पातु माया स्वराट् स्वयम् ॥
सर्वांगे पातु मां लक्ष्मीर्विष्णुमाया सुरेश्वरी ।
विजया पातु भवने जया पातु सदा मम ॥
शिवदूती सदा पातु सुन्दरी पातु सर्वदा ।
भैरवी पातु सर्वत्र भेरुण्डा सर्वदाऽवतु ॥
त्वरिता पातु मां नित्यमुग्रतारा सदाऽवतु ।
पातु मां कालिका नित्यं कालरात्रिः सदाऽवतु ॥
नवदुर्गा: सदा पातु कामाक्षी सर्वदाऽवतु ।
योगिन्यः सर्वदा पातु मुद्राः पातु सदा मम ॥
मात्रा पातु सदा देव्यश्चक्रस्था योगिनीगणाः ।
सर्वत्र सर्व कार्येषु सर्वकर्मसु सर्वदा ॥
पातु मां देव देवदेवी च लक्ष्मीः सर्व समृद्धिदा ॥