मन्त्र सिद्धि के लिये विशेष रूप से हमारे तान्त्रिक गुरुओं ने आसन, माला, दिशा, समय का उल्लेख किया है जिसे जानना
अनिवार्य है। इस प्रकार प्रयोग करने पर मन्त्र सिद्ध शीघ्र होता है तथा जागृत होता है ।
–
१. आसन – आकर्षण, वशीकरण कर्म हेतु व्याघ्र चर्म का आसन, उच्चाटन के लिये ऊँट चर्म का आसन, विद्वेषण के लिये
अश्वचर्म का आसन, मारण कार्य के लिये महिष चर्म का आसन प्रयोग में लाना हितकर होगा। शान्ति, पुष्टि और लक्ष्मी प्राप्ति के निमित्त सफेद या पीले रंग का आसन, सम्मोहन वशीकरण के लिये लाल रंग का आसन, मारण में काले या नीले रंग का आसन प्रयोग में लाया जाता है। नित्य कर्म के लिये कुशा, चर्म और रेशमका आसन उत्तम होता है। यह आसन दो हाथ लम्बा तथा दो हाथ चौड़ा होना चाहिये। काम्य कर्मों में व्याघ्र चर्म का आसन सर्वसिद्धिदायक तथा रोगनाशक होता है।
२. दिशा– अनुष्ठान या मन्त्र सिद्धि में दिशा का बड़ा महत्त्व है। किस दिशा में मुख करके बैठकर कौन-सा मन्त्र जपा जाता है। वह इस प्रकार दिया जा रहा है। लक्ष्मी प्राप्ति, अरिष्ट नाश, ग्रह शान्ति, पुष्टि आदि सुखवर्धक कार्य हेतु उत्तर या पश्चिम दिशा की तरफ बैठकर मन्त्र जप करना चाहिये। वशीकरण, आकर्षण, सम्मोहन में उत्तर दिशा की तरफ मुख करके मन्त्र जप करना चाहिये। स्तम्भन के लिये पूर्व या दक्षिण दिशा मेंकरके मन्त्र जपना चाहिये। विद्वेषण प्रयोग में नैऋत्य कोण में,उच्चाटन प्रयोग में, वायव्य या अग्नि कोण में, मारण कार्य में दक्षिण दिशा में मुख करके जप करना चाहिये ।
३. माला – शत्रु नाश के लिये कमल गट्टे की माला, सम्पत्ति प्राप्ति के लिये जीव-पुत्रिका की माला; पुष्टिकर, दारिद्रय नाशक व सम्पत्ति प्राप्ति हेतु लाल चन्दन की माला, मूंगा की माला, शंख की माला प्रयोग में लानी चाहिये। सम्मोहन, आकर्षण,वशीकरण में कमल गट्टे की माला; स्तम्भन में निम्बोली की माला, विद्वेषण में छिलके सहित निम्बोली की माला और मारण में घोड़े के दाँत की माला प्रयोग में लानी चाहिये। रुद्राक्ष कीमाला सब प्रकार की सिद्धियों के लिये उत्तम है। माला की सभी मणियाँ समान हों।
अर्थसिद्धि के लिये २७ मणियों की माला, मारण कार्य के लिये १५ मणियों की माला तथा समस्त प्रकार के कर्म के लिये १०८ मणियों की माला का प्रयोग करना चाहिये। सभी मालाओं में मन्त्र जपते समय अनुलोम विलोम का प्रयोग करना चाहिये।
४. हवन – हवन में गाय का घी, आसन में मृगचर्म, माला में रुद्राक्ष, दिशा में पूर्व या उत्तर सदा पवित्र माना गया है।
५. स्थान – तान्त्रिक अनुष्ठान शवपीठ, श्मशान या श्यामापीठ पर किया जाता है। सामान्य तथा काम्य प्रयोग उस देवता के
मन्दिर में किया जाता है जिस देवता का मन्त्र होता है। सिद्ध पीठों में मन्त्र सिद्धि शीघ्र होती है। तमोगुणी साधना श्मशान में, रजोगुणी साधना देव मन्दिर या अपने निवास स्थान पर और सत्वगुणी उपासना नदी के तीर या तीर्थ स्थल पर की जाती है। जो देव मूर्ति उपेक्षित हो या पुराना देव मन्दिर जिसकी पूजा नहीं हो रही है, वहाँ जप करने से शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है। गुरु के सान्निध्य में भी जप करने से शीघ्र सिद्धि मिलती है। ये सब दुर्लभ हो तो अपने घर के एकान्त कमरे में प्रयोग करना चाहिये। मारण कार्य कभी भी घर में नहीं करना चाहिये ।
६. समय – तिथि, वार, योग, ऋतु एवं मास, पक्ष लक्ष्मी साधना, शान्ति एवं पुष्टि· साधना- किसी भी माह के शुक्ल पक्ष में बुध व गुरुवार तथा २, ३, ४, ७ तिथियों से करना चाहिये। इसके लिये हेमन्त ऋतु उपयुक्त समय है।
वशीकरण सम्मोहन, आकर्षण-यह प्रयोग वसन्त ऋतु शुक्ल पक्ष की ४, ६, ९, १३ तिथियों को तथा सोमवार एवं गुरुवार को करना चाहिये।
स्तम्भन – शिशिर ऋतु में ८, १५ तिथि को रवि, मंगल या शनिवार से करें।
विद्वेषण-ग्रीष्म ऋतु में शुक्ल पक्ष की ८, ९, १०, ११ तिथियों एवं शुक्रवार या शनिवार से करे।
उच्चाटन- वर्षा ऋतु में कृष्ण पक्ष की ८, १४ तथा रवि या शनि से करे।
मारण- शरद ऋतु के कृष्ण पक्ष में ८, १५ तिथि एवं रवि, मंगल या शनि से क्रिया प्रारम्भ करें।
सभी शुभ कर्म प्रयोगों के लिये गुरु शुक्र के उदय काल में अमृत सिद्धि योग, स्वार्थ सिद्धि योग, रवियोग या कुमार योग में कार्य प्रारम्भ के लिये उत्तम समय है।
शान्ति कार्य में ‘नमः’ शब्द, स्तम्भन में ‘वषद्’ शब्द, वशीकरण में ‘स्वाहा’ शब्द विद्वेषण में बौषट्’ शब्द, उच्चाटन में ‘हुँ’ शब्द तथा मारण में ‘फट्’ शब्द का प्रयोग मन्त्र के अन्त में करना चाहिये।
दस अक्षर तक के मन्त्र बीज मन्त्र’, बीस अक्षर के मन्त्र और अधिक अक्षर वाले मन्त्र को ‘माला मन्त्र’ कहा जाता है।
मन्त्र की जातियाँ- एक वर्ण वाले मन्त्र को कर्त्तरी, दो अक्षर वाले मन्त्र को सूची, तीन अक्षर वाले मन्त्र को मुद्गर, चार अक्षर वाले मन्त्र को मुसल, पाँच अक्षर वाले मन्त्र को क्रूर, छः अक्षर वाले मन्त्र को शृंखला, सात अक्षर वाले मन्त्र को क्रकच, आठ अक्षर वाले मन्त्र को शूल, नव अक्षर वाले मन्त्र को वज्र, दस अक्षर वाले मन्त्र को शक्ति, एकादश अक्षर वाले मन्त्र को परशु,द्वादश अक्षर वाले मन्त्र को चक्र, त्रयोदश अक्षर वाले मन्त्र को कुलिश, चतुर्दश अक्षर वाले मन्त्र को नाराच, पंचदश अक्षर वाले मन्त्र को भुशुंडी, षोडश अक्षर वाले मन्त्र को पद्म कहा जाता है।
जिस मन्त्र के प्रारम्भ में नाम लिया जाता है उसे ‘पल्लव मन्त्र’ कहा जाता है। जिसके अन्त में नाम लिया जाय उसे ‘योजनमन्त्र’ कहते हैं। नाम के आदि मध्य या अन्त में मन्त्र होने से ‘रोधमन्त्र’ कहलाता है। नाम के प्रत्येक अक्षर के पीछे मन्त्र देने पर उसे ‘पर मन्त्र’ कहा जाता है। नाम के आदि और अन्त में मन्त्र देने से ‘सम्पुट मन्त्र’ कहा जाता है। मारण, उच्चारण, विद्वेषण कार्य में पल्लव मन्त्र का प्रयोग होता है।” वशीकरण, शक्ति, मोहन में योजन मन्त्र का प्रयोग होता है।
कीलन, त्राटक रक्षादि कार्यों में सम्पुट मन्त्र का उपयोग होता है। बन्धन, उच्चाटन, मारण कार्य में मन्त्र के अन्त में हुं लगाया जाता है।
विद्वेषण कार्य में मन्त्र के अन्त में फट् लगाया जाता है।
भूत प्रेत आदि की शान्ति में मन्त्र के अन्त में हुं फट् लगाया जाता है।
शुभ कार्यों में मन्त्र के अन्त में वषट् लगाया जाता है।
यज्ञादि में मन्त्र के अन्त में स्वाहा लगाया जाता है।
पूजन कार्यों में मन्त्र के अन्त में नमः लगाया जाता है।
पुष्टि, पुत्रादि कार्यों में मन्त्र के अन्त में स्वाहा लगाया जाता है।
प्रबल वशीकरण कार्य में मन्त्र के अन्त में स्वधा लगाया जाता है।
परस्पर विद्वेषण कार्यों में मन्त्र के अन्त में वषट् लगाया जाता है।
आकर्षण में मन्त्र के अन्त में हुं लगाया जाता है
उच्चाटन ऋक में मन्त्र के अन्त में स्वस लगाया जाता है।
जिस मन्त्र के अन्त में स्वाहा नमः शब्द का प्रयोग होता है ये स्त्री संज्ञक मन्त्र कहा जाता है। जिस मन्त्र के अन्त में हुं या फट् शब्द का प्रयोग होता है उसे पुरुष संज्ञक मन्त्र कहा जाता है जिन मन्त्रों के अन्त में स्वाहा शब्द का प्रयोग किया जाता है उसे नपुंसक मन्त्र कहा जाता है।
रुद्राक्ष की माला बहुत पवित्र और सभी कार्यों के लि ये उत्तम होती है। इस माला को हमेशा गले में पहना जा सकता है। इसके पहनने से हृदय रोग, रक्तचाप का रोग दूर होता है। वैष्णव लोग तुलसी की माला का प्रयोग करते हैं। कमलगट्टा की माला लक्ष्मी प्राप्ति हेतु तथा लाल चन्दन की माला धन प्राप्ति हेतु प्रयोग में विशेष लाभकारी होती है। गणपति के प्रयोग में मूँगे की माला, सरस्वती के प्रयोग में स्फटिक की माला, स्तम्भन तथा शत्रुनाशक कर्म हेतु हल्दी की माला उपयुक्त होती है। धन प्राप्ति हेतु पश्चिम दिशा श्रेष्ठ है।
हवन कुण्ड– शान्ति पुष्टि सम्पत्तिप्रद प्रयोग में कुण्ड गोल आकार का; वशीकारण, आकर्षण, सम्मोहन प्रयोग में अष्टकोण वाला कुण्ड; स्तम्भन में चतुष्कोण वाला कुण्ड; विद्वेषण में त्रिकोण वाला कुण्ड; उच्चाटन में षटकोण वाला कुण्ड; मारण में अर्धचन्द्र वाला कुण्ड काम में लाना चाहिये।
हवन में समिधा-शान्ति सम्पत्ति और पुष्टि कार्य में पलाश, बिल्वपत्र, सभी गूलर या अन्य दूध वाली लकड़ी लानी चाहिये।
वशीकरण में भी इन्हीं लकड़ियों को हवन कार्य में लाना चाहिये। स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चारण मारण कार्य में कुचीला नीम या धतूरे की समिधा हवन प्रयोग में लेनी चाहिये।
मन्त्र जप के लिये ब्रह्म मुहूर्त या रात्रि ज्यादा उपयुक्त होती है। जप करते समय रक्षा विधान सबसे पहले करना चाहिये। जप करते समय साधक को बिल्कुल निडर रहना चाहिये। जरा भी भयभीत नहीं होना चाहिये। भैरव तन्त्र या हनुमद् तन्त्र का प्रयोग निर्भय होने के लिए करना चाहिये। अधिक मात्रा वाले मन्त्र प्रयोग में प्रतिदिन हवन करना ठीक होता है। अनुष्ठान में कभी कम और कभी ज्यादा मन्त्र नहीं जपना चाहिये।
स्तम्भन तथा वशीकरण कार्य में अंगूठे के अग्रभाग से माला जपना चाहिये। आकर्षण व वशीकरण कार्य में अंगूठे व अनामिका के सहयोग से माला जपनी चाहिये। विद्वेषण में अंगूठे व तर्जनी तथा मारक कार्यों में अंगूठे व कनिष्ठिका उंगली से माला जपनी चाहिये ।
शुभ कार्यों में पद्मासन में, स्तम्भन कार्य में विकटासन में, आकर्षण, सम्मोहन आदि में कुक्कुटासन, शान्ति कार्य में स्वस्तिकासन, मारक कार्य में पार्ष्णिकासन, वशीकरण कार्य में भद्रासन में बैठकर मन्त्र जाप करना चाहिये।
सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, शिवरात्रि, होलिका, दीपावली, सिद्ध पीठ एवं गुरु जिस दिन से कार्यारम्भ करने को कहे उस दिन से प्रयोग करना चाहिये। मेरूतन्त्र में लिखा गया है कि शान्ति कर्म के प्रयोग में उपांशु, पुष्टि कर्म में मानसिक और अभिचार कर्म में वाचक जप किया जाना चाहिये। तन्त्र शास्त्र में माला का विशेष महत्त्व बतलाया गया है।
गये धन की प्राप्ति के लिये शंख की माला, शान्ति एवं ऐश्वर्यकारक हेतु स्फटिक की माला, ऋद्धि सिद्धि धन के लिये कमल गट्टे की माला, सन्तान प्राप्ति के लिये पुत्रजीवक की माला, वशीकरण के लिये मूंगा की माला, मुक्ति के लिये मोती की माला, कामना सिद्धि के लिये सोने चाँदी की माला, कामशक्ति वृद्धि के लिये व स्त्री वशीकरण के लिये हल्दी की माला, पुरुष वशीकरण के लिये दर्वी की, ज्वर शान्ति के लिये लाख की, पित्त रोग शान्ति हेतु शंख की, स्वास्थ्य लाभ हेतु देवदार की,उच्चाटन के लिए आम की, यक्षिणी साधना के लिये लाल चन्दन की माला प्रयोग करें।