काली ओज ,तेज,पराक्रम ,विजय और वैभव की देवी हे । इसकी उपासना रक्षा,शत्रुदमन,विजय प्राप्ति ,भय निवारण और
समृद्धि-प्राप्ति के उद्देश्य से की जाती हे । महाभागवत मे वर्णित दश महाविधाओ मे महाकाली को ही मूलरूप बतलाकर प्राथमिकता दी गई हे ।
काली सिद्धि की साधना के लिए सबसे उपयुक्त स्थान श्मशान हे । शमशान एक ऐसा स्थान होता हे जहा जाते ही संसार से मोक्ष का आभास होता हे ।संसार से वैराग्य की भावना एकदम जागृत होती हे ।
ध्यानम्
करालवदनां धोरां मुक्तकेशीं चतुर्भुजाम्।
कालिकां दक्षिणां दिव्यां मुण्डमालाविभूषिताम्॥
सद्यश्छिन्न शिरः खड्गवामोधूवधिः करांबुजाम्।।
अभयं वरदं चैव दक्षिणाधोदर्ध्वपाणिकाम् ॥
महामेघप्रभां श्यामां तथा चैव दिगम्बरीम् ।
कण्ठावसक्त – मुण्डाली-गलद्रुधिर-चर्चिताम् ॥
कर्णावतंसतानीत – शवयुग्म – भयानकाम् ।
घोरदंष्ट्राकरालास्यां पीनोन्नतपयोधराम् ॥
शवानां करसंघातैः कृतकाञ्चीं इसन्मुखीम् ।
सृक्कृच्छटा-गल द्रक्त- धराविस्फुरिताननाम् ॥
घोररावां महारौद्री श्मशानालयवासिनीम् ।
बालर्क-मण्डलाकार- लोचनत्रितयान्विताम् ॥
दत्तुरां दक्षिणव्यापि मुक्तालम्बिकचोच्चयाम् ।
शवरुपमहादेव – हृदयोपरि संस्थिताम् ॥
शिवाभिघोररावाभिश्चतुर्दिक्षु समन्विताम् ।
महाकालेन च समं विपरीतरतातुराम् ॥
सुखप्रसन्नवदनां स्मेराननसरोरुहाम् ।
एवं सचिन्तयेत् कालीं सर्वकामसमृद्ध्दिदाम् ॥
कालिका देवी भयंकर मुखवाली, घोरा, बिखरे केशों वाली, चतुर्भुजा तथा मुण्डमाला से अलंकृत हैं। उनकी दक्षिण ओर के दोनों हाथों में अभय और वरमुद्रा विद्यमान हैं।वाम ओर के दोनों हाथों में तत्काल छेदन किए हुए मृतक का मस्तक एवं खड्ग है। कण्ठ में मुण्डमाला से देवी गाढ़े मेघ के समान श्यामवर्ण, दिगम्बरी, कण्ठ में स्थित मुण्डमाला से टपकते रुधिर द्वारा लिप्त शरीर वाली, घोरदंष्ट्रा, करालवदना और ऊँचे स्तन वाली हैं। उनके दोनों श्रवण
(कान) दो मृतक मुण्डभूषणरूप से शोभा पाते हैं, देवी के कमर में मृतक के हाथों की करधनी विद्यमान है, वह हास्य मुखी हैं। उनके दोनों होठों से रक्त की धारा क्षरित होने के कारण उनका वदन कम्पित होता है, देवी घोर नादवाली, महाभयंकरी और श्मशानवासिनी हैं, उनके तीनों नेत्र तरुण अरुण की भाँति हैं।बड़े बड़े दाँत और लम्बायमान केशकलाप से युक्त हैं, वह शवरूपी महादेव के हृदय पर स्थित हैं, उनके चारों ओर रख गीदड़ी भ्रमण करती है। देवी महाकाल के सहित विपरीत विहार में आसक्त हैं, वह प्रसन्नमुखी, सुहास्यवदन और सर्वकाम-समृद्धिदायिनी हैं। इस प्ररकार उनका ध्यान करें।
कवचम्
शिरो मे कालिका पातु क्रींकारकाक्षरी परा।
क्रीं क्रीं क्रीं मे ललाटं च कालिका खड्गधारिणी॥
हुं हुं पातु नेत्रयुग्मं ह्रीं ह्रीं पातु श्रुतिं मम ।
दक्षिणे कालिके पातु घ्राण युग्मं महेश्वरी॥
क्रीं क्रीं क्रीं रसना पातु हूं हूं पातु कपोलकम्।
वदनं सकलं पातु ह्रीं ह्रीं स्वाहा स्वरूपिणी ॥
द्वादविंशत्यक्षरी स्कंधौ महाविद्या सुखप्रदा।
खड्गमुंडधरा काली सर्वान्गमभितोऽवतु ||
क्रीं हुं ह्रीं त्रयक्षरी पातु चामुंडा हृदय मम।
ऐं हुं ओम् ऐं स्तनद्वयं ह्रीं फट् स्वाहा ककुत्स्थलं ॥
अष्टाक्षरी महाविद्या भुजौ पातु सकर्त्तृका।
क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं करौ पातु षडक्षरी मम॥
क्रीं नाभिमध्यदेशं च दक्षिणे कालिकेऽवतु ।
क्रीं स्वाहा पातुपृष्ठंतु कालिका सा दशाक्षरी ॥
ह्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके हुं ह्रीं पातुं कटिद्वयं ।
काली दशाक्षरी विद्या स्वाहा पातूरूयुग्मकम् ॥
ओम् ह्रीं क्रीं मे स्वाहा पातु कालिका जानुनी मम।
काली हन्नामविद्येयं चतुर्वर्ग फलप्रदा ॥
क्रीं ह्रीं ह्रीं पातु गुल्फं दक्षिणे कालिकावतु।
क्री हुं ह्रीं स्वाहा पदं पातु चतुर्दशाक्षरी मम॥
खड्ग मुंडधरा काली वरदाभयहारिणी ।
विद्याभिः सकलाभिः सा सर्वान्गमभितोऽवतु ॥
काली कपालिनी कुल्ला कुरूकुल्ला विरोधिनी ।
विप्र चिंता तथोग्रोग्रप्रभा दीप्ताघनस्विषा ॥
नीला घना बालिका च माता मुद्रामितप्रभा ।
एताः सर्वाः खड्गधरा मुंडमाला विभूषिता ॥
रक्षंतु मां दिक्षुदेवी ब्राह्मी नारायणी तथा।
माहेश्वरी च चामुंडा कौमारी चौपराजिता ॥
वाराही नारसिंही च सर्वाश्चामित भूषणा ।
रक्षंतु स्वायुधैर्दिक्षु मां विदिक्षु यथा तथा ॥
श्यामा दक्षिण काली के मन्त्र
1. क्रीं ।
2. क्रीं क्रीं क्रीं ।
3.ॐ ह्रीं ह्रीं हूं हूं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके कीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं
ह्रीं ।
4.ॐ ह्रीं ह्रीं हूं हूं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं
ह्रीं स्वाहा।