वास्तुशास्त्र

मकान बनवाया या बना-बनाया फ्लैट खरीदा, उसे सजाने-संवारने आदि के लिए काफी पैसा खर्च किया,फिर भी मकान में रहनेवालों को सुख-शांति नहीं मिली। वास्तु शांति की, सभी धार्मिक विधियां अपनाईं, कुलपरंपरा

के अनुसार धार्मिक क्रिया-कलाप विद्वान पंडितों से करवाए, फिर भी हमारा नया मकान सुख-शांति नहीं देरहा है। न घर में धन-दौलत की बरकत है, न कुटुंबियों में परस्पर प्रेम का भाव। नित्य कोई-न-कोई झगड़ा

होता है…कोई-न-कोई बीमार रहता है। ऐसा क्यों? ऐसे ही अनेक प्रश्न हमारे पास आनेवाले आम लोगों के रहते हैं। 

कुछ मकान ऐसे होते हैं जो अशांत होते हैं और निवास के योग्य नहीं होते। कुछ मकानों में रहनेवालों केबीच शांति, प्रगति का अखंड रूप से झरना बहता ही रहता है, तो कुछ मकान अशांति, भय, दुख एवं क्लेश

उत्पन्न करते हैं। नये मकान में जाने से पूर्व पुराने मकान में दो छोटे-छोटे कमरों में गृहस्थी आनंद से कट रही थी, लेकिन नये मकान में निवास करने के लिए जाने के बाद कष्ट क्यों पहुंचते हैं? ऐसी समस्याएं सभी को

व्यथित करती हैं।

इसका एकमात्र कारण आपके मकान में वास्तुदोष का होना है। वह वास्तुशास्त्र के नियम-सिद्धांतों केअनुसार नहीं बना है। आपके नये मकान में पूजास्थल गलत दिशा में बनाया गया है, किचन एवं बेडरूम भी गलत दिशा में गलत जगह बनाए गए हैं-

विगत कुछ वर्षों में स्वयं को वास्तुशास्त्री कहलानेवालों की बाढ़ सी आ गई है। इस विषय में जनता जनार्दन का मार्गदर्शन करते हुए हमारे पूर्वजों ने वास्तुशास्त्र की रचना की। 

भारत में शास्त्रों के भंडार हैं। हमारे आचार्य-महर्षियों ने हर बात का संबंध ग्रहों से जोड़ा है। स्वतंत्र बंगला समय एवं परिस्थिति- इन तीन बातों का विचार करने पर यह महसूस होता है कि आज के अस्थिर एवं महंगाई या मकान बनने के बजाय सोसायटी में फ्लैट लेना ही आज श्रेयस्कर समझा जाता है।  फ्लैट्स बनाते समय वे वास्तुशास्त्र नकारा नहीं जा सकता। बिल्डर सस्ते में जमीन खरीद लेते हैं और उस जमीन पर बहुमंजिले फ्लैट बनाकर के नियमों का पालन नहीं करते। यही कारण है कि वास्तुशिल्पी (आर्किटेक्ट) वास्तुशास्त्र के नियमों के पालन की तरफ ध्यान नही देते।

• कभी श्मशान रह चुकी भूमि पर आज गगनचुंबी इमारतों का निर्माण हो रहा है। ऐसी इमारतों में रहनेवालों को सुख-शांति और आनंद कैसे मिलेगा? मूलतः प्राचीन वास्तुशास्त्र संस्कृत भाषा में लिखा हुआ है।

ग्रहाराज्यं प्रयच्छान्ति महाराज्यं हरन्तिच।

ग्रहैव्य मित मिंद सर्वय्यैतोक्यं सचराचरम् ॥

…यह जो हमारे ऋषि-मुनियों ने लिखा है क्या वह निरर्थक है? जहां ग्रह अनुकूल होने पर राजपाट प्रदान करते हैं, वहीं प्रतिकूल बनने पर दर-दर का भिखारी बना देते हैं। किसी भी मनुष्य की कुंडली के ग्रह जब

गोचरवश अनिष्ट हो जाते हैं तो उसका भाग्य भी बदल जाता है। ग्रहों की मदद से भविष्य जाना जा सकता है।जो भाग्य में लिखा हुआ नहीं है वह लाख कोशिशों के बाद भी नहीं मिलेगा। इतना ही नहीं, जो और जितना

भाग्य में है उसकी प्राप्ति समय आने पर ही होगी, उसके पहले नहीं। समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ मिलता नहीं है-यह पत्थर की लकीर है। ‘भाग्य फलति सर्वत्र’। ग्रहों की प्रतिकूलता के परिणाम सभी को भोगने पड़ते हैं। जिस प्रकार मानव जीवन पर ग्रहों के शुभाशुभ परिणाम होते हैं, उसी तरह अचल वस्तुओं पर भी ग्रहों के ऐसे ही परिणाम होते हैं। जिसका आकार है उसका भाग्य होता ही है। यह उदाहरण देखें: कुछ पत्थरों से भगवान की मूर्तियां बनाई जाती हैं और लोग श्रद्धा से उनकी पूजा-अर्चना करते हैं, कुछ पत्थरों से कब्रें बनती है तो कुछ पत्थर अन्नदाता रसोईघर के चौके पर विराजमान होते हैं। कुछ पत्थर स्नानगृह के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं, तो कुछ पत्थर टॉयलेट के लिए। यह

सब क्या है? इसका स्पष्ट अर्थ है-चल हो या अचल-भाग्य सबका होता है। उन पर भी ग्रहों का प्रभाव पड़ना अनिवार्य है। पत्थर, ईंट, मिट्टी, लकड़ी, चूना, बालू, लोहा, सीमेंट इत्यादि से इमारतें तथा मकान बनते

हैं तो उनका भाग्य क्यों न होगा!जिस मकान में हम रहते हैं, अपनी आजीविका और गृहस्थी चलाते हैं, मकान हमारे लिए लाभप्रद सिद्ध

होगी या नहीं? – यह बात सर्वप्रथम परखनी चाहिए। मकान में कोई वास्तुदोष हो तो गृहस्थी सुचारु रूप से चला पाना असंभव है। मकान में वास्तुदोष हों तो उनके निवारण के लिए आवश्यक सभी उपाय करने चाहिए।

इन दोषों की शांति नहीं हुई तो उस मकान में सुख मिलना असंभव है। दोषपूर्ण मकान में रहनेवाले का भाग्योदयकभी नहीं होगा। मकान बदलने या उसमें तोड़फोड़ करने की सलाह देना आसान है, पर प्रत्यक्षतः उस पर

अमल करना बहुत ही जटिल एवं कठिन कार्य है। धर्म में श्रद्धा रखकर किए गए उपाय कारगर सिद्ध होते हैं-यह मेरा अपना अनुभव है।

मकान का भाग्य क्या है? यह ज्योतिषशास्त्र में वर्णित मार्गदर्शक सिद्धांतों से जाना जा सकता है।

प्राचीन वास्तुशास्त्र ज्योतिष एवं मुहूर्त विज्ञान पर आधारित है। ज्योतिषशास्त्र में वास्तु से संबंधित संपूर्ण जानकारी है! उसका अध्ययन होना नितांत आवश्यक है। आधे-अधूरे ज्ञान के आधार पर लोगों को मार्गदर्शन देने से ज्योतिष तथा ज्योतिषी दोनों का नुकसान ही होगा। संपत्ति, संतान एवं आनंद की अनुभूति प्राप्ति के विषय में अनेक सुझाव वास्तुशास्त्र में दिए गए हैं, जिनका अध्ययन करना आवश्यक है।वास्तुशास्त्र के नियमों के विषय में हमारे प्राचीन ग्रंथ मत्स्यपुराण में निम्न श्लोक लिखा है:

भृगरत्रिवोशिष्ठश्च विश्वकर्मा मयस्तथा नारदो नग्नजिच्चैव

विशालाक्षः पुरंदरः ब्रह्माकुमारी नन्दीशः शौनको गर्ग एवच

वासुदेवो निरुद्धश्च तथा शुक्र बृहस्पति

अष्टा दशेते विख्याता वास्तुशास्त्रोपदेशका संक्षेपणोपरिष्टं यन्वहे मत्स्यरूपिणा।

अच्छा मकान कैसा हो ?

हमारी पृथ्वी अंडाकार है इसलिए मकान भी अंडाकार (Oval-shaped) होना चाहिए। पृथ्वी की

लंबाई-चौड़ाई भी पूर्व-पश्चिम है इसलिए मकान की लंबाई-चौड़ाई भी पूर्व-पश्चिम होनी चाहिए। पृथ्वी का

मध्यभाग ऊंचा है इसलिए मकान का मध्यभाग भी ऊंचा होना चाहिए। पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश सर्वप्रथमपूर्व दिशा में आता है, अत: मकान का मुख्य प्रवेशद्वार भी पूर्व में ही होना चाहिए। सूर्य सृष्टिकर्ता है, जीवनदाता

है, सूर्योपासना कितने ही देशों में अनेक शताब्दियों से चली आ रही है। मकान के चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic field) पर सूर्य किरणों का अच्छा प्रभाव हो और उसकी अनुभूति प्राप्त हो-इसी उद्देश्य से शास्त्रकारों ने

मकान का दरवाजा पूर्व में रखने का आग्रह किया है। मानवीय जीवन के लिए अति आवश्यक ऊर्जा एवं प्रकाश ऊष्मा के रूप में सूर्य से प्राप्त होता है। सूर्य की किरणें जीवन ऊर्जा प्राप्त करने का निश्चित मार्ग हैं। उत्तरायण

एवं दक्षिणायण का शास्त्रीय महत्त्व है। इस संदर्भ में उत्तर-पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व दिशाएं भी अपना अलग महत्त्व रखती हैं। यही कारण है कि वास्तु के विषय में निम्न महत्त्वपूर्ण बातों को प्रधानता दी गई है:

* मकान की अधिक खिड़कियां पूर्व और दक्षिण में होना उत्तम रहता है।

* मकान का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व और दक्षिण-पूर्व में होना चाहिए।

* अधिक खुली जगह पूर्व और उत्तर पूर्व में होनी चाहिए।

* बरामदा-अहाता पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व में होना चाहिए।

* कुआं-बावड़ी, हैंडपंप या पानी की टंकी पूर्व-उत्तर एवं ईशान्य में होनी चाहिए।

टैरेस-छज्जा पहली मंजिल पर दक्षिण-पूर्व या पूर्व में होना चाहिए।

राशियों की दिशाएं

सूर्यः शुक्रो महोसुनुः

बुधो बृहरचतिश्चेति

इस श्लोक के अनुसार दिशाओं का क्रम इस तरह है:

ज्यादा चौड़ी दीवारें पश्चिम, दक्षिण एवं दक्षिण-पश्चिम में होनी चाहिए।

खिड़कियों की संख्या दक्षिण एवं पश्चिम दिशाओं में कम होनी चाहिए।

बड़े पेड़, पत्थर दक्षिण-पूर्व या पूर्व में नहीं होने चाहिए।

रसोईघर दक्षिण-पूर्व में होना अनिवार्य है। इससे सूर्य की किरणें पूर्व-पश्चिम से मिलेंगी एवं ताजी हवा दक्षिण दिशा से रसोईघर में आएगी।

21 मार्च एवं एवं 21 सितंबर-इन दोनों दिनों में ही सूर्य

पूर्व बिंदु में रहता है अन्य दिनों में उत्तरायण रहता है। निश्चित रूप से पूर्व दिशा जानने के लिए अच्छे दिशासूचक

यंत्र (Compass) की आवश्यकता होगी। मकान की पूर्व-पश्चिम रेखा ठीक हो तो उस मकान में रहनेवालों को खुशहाली प्राप्त होगी। मकान का विषुववृत्त मानव की कमर की तरह है और विषुववृत्त ठीक न हो तो उस

भाग्यशाली साबित होगा। अर्थात पूर्व दिशा में प्रवेशद्वार होना अपरिहार्य है। संध्या करते समय हम ‘ईशान्य दिशे ईश्वराय नमः’ बोलते हैं। मकान में ईशान्य दिशा में सूर्य की किरणें आती हों तो उसमें रहनेवालों पर

भगवान की कृपा ही समझनी चाहिए। गृहप्रवेश की दिशा पर ग्रहों के प्रभावानुसार परिवार के मुखिया का स्वभाव भी बदलता रहता है, जैसे:

मकान के दरवाजे की दिशा पर जिस ग्रह का प्रभाव होगा उस मकान के स्वामी का स्वभाव प्राय: उस ग्रहप्रभाव से मुक्त पाया जाता है।

मकान का प्रवेशद्वार पूर्व दिशा में हो तो पूर्व दिशा के स्वामी सूर्य के गुणधर्म के अनुसार उस मकान के स्वामी का स्वभाव सतोगुणी, महत्त्वाकांक्षी एवं साहसी होगा।

मकान का प्रवेशद्वार आग्नेय दिशा में हो तो दिशा स्वामी शुक्र होने से मकान का स्वामी रंगीला, शौकीन,विलासी, सिनेमा, नाटक, संगीत, चित्रकला, खाना-पीना, मौजमजा इत्यादि बातों का शौकीन होगा।

नए वस्त्रों का शौकीन, सुगंधित द्रव्य प्रेमी एवं खट्टे पदार्थों में उसकी रुचि रहती है।

दक्षिण दिशा में मकान का प्रवेश द्वार होने पर स्वामी का स्वभाव दिशा स्वामी मंगल के अनुसार साहसी, गर्वीला, गुस्सेबाज एवं हठीला होगा। चटपटी, रुचिकारक चीजें खाने का उसे शौक रहता है।

नैऋत्य दिशा में मकान का प्रवेश द्वार हो तो उस मकान के स्वामी का स्वभाव दिशा स्वामी राहु जैसा होगा। राहु के गुणधर्म के अनुसार तामसी, कामुक, गैर-कानूनी काम करनेवाला एवं गूढ़शास्त्रों, तंत्रमंत्र

का ज्ञाता होगा। बासी भोजन करने में रुचि रहती है।

पश्चिम दिशा में प्रवेशद्वार हो तो मकान का स्वामी शनि के दिशा स्वामी होने से गंभीर, विचारवान,सहनशील एवं जिम्मेदारी बंटानेवाला होता है। तेल से बनी चीजें, कड़वी और ठंडी चीजें खाने-पीने में रुचि रहती है।

 वायव्य दिशा में मकान का प्रवेशद्वार हो तो दिशा स्वामी चंद्र के कारण अस्थिर, चंचल, भावुक, यात्राका शौकीन, मृदुभाषी रहता है। तरकारियां एवं नमक अधिक खाने में रुचि रखता है।

उत्तर दिशा में मकान का प्रवेशद्वार हो तो दिशा स्वामी बुध होने के कारण बुद्धिमान, हास-परिहास करनेवाला, साहित्यकार, कोई भी काम फुर्ती से करनेवाला होता है। सभी चीजें पर्याप्त मात्रा में खाने की प्रवृत्ति उसमें पाई जाती है। ईशान्य दिशा में मकान का प्रवेश द्वार हो तो ईशान्य दिशाधिपति बृहस्पति जैसे स्वभाव का होता है।धार्मिक, परोपकारी, किसी भी विषय की गहरी जानकारी रखनेवाला, बहुभाषी, स्वभाव से मस्तमौला

होता है। मीठे पदार्थों का शौक रहता है।

पानी नैऋत्य दिशा में कभी न रखें, वह स्वादहीन लगेगा।

बेडरूम नैऋत्य दिशा में हो तो उसमें सोनेवाले को बुरे स्वप्न दिखाई देंगे। नींद अच्छी नहीं आएगी।

नींद में हड़बड़ाकर उठने की आदत रहेगी।

रसोईघर पश्चिम या नैऋत्य दिशा में न हो। पश्चिम एवं नैऋत्य दिशाओं से आनेवाली किरणों के

● कूड़ा-करकट रखने एवं टॉयलेट की जगह पश्चिम में ही रखें। पश्चिम दिशा का स्वामी शनि

कारण रसोई में बननेवाले भोजन में मधुरता नहीं रहेगी।

कूड़ा-करकट एवं गंदगी का कारक है।

● नैऋत्य दिशा में कुछ भी नहीं हो। अनावश्यक चीजें इस दिशा में रख सकते हैं।

और किसी भी दिशा में ऐसी चीजें न रखें।

● कीमती जेवर एवं नगदी रखने के लिए ईशान्य दिशा श्रेष्ठ एवं संपत्तिवर्धक है। ईशान्य के अलावा

● जन्मकुंडली में राहु-मंगल किसी भी स्थान में इकट्ठे हों तो दूषित जगह में रहने का पक्का योगबनता है। ऐसा जातक जिस मकान में रहेगा वह मकान बाधाग्रस्त होगा। मकान की रचना ऐसी हो

• जिसमें दक्षिण और नैऋत्य दिशाओं से आनेवाली किरणों का संयोग न हो। इन दो दिशाओं से आनेवाली किरणों का संगम ही राहु-मंगल की युति है। ऐसे मकान में रहनेवाले को हमेशा अकस्मात एक्सीडेंट

का भय रहेगा। वह सुख-शांति से वंचित होगा।

● पूर्व दिशा में टॉयलेट कदापि नहीं होना चाहिए। पूर्व से आनेवाला सूर्यप्रकाश टॉयलेट पर गिरना हानिकारक

है। पूर्व दिशा में टॉयलेट होने से उस मकान में रहनेवालों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रहती। यदिमकान के प्रवेशद्वार पर टॉयलेट है, तो फिर गृहप्रवेश किसी भी दिशा से हो, ऐसे मकान में रहनेवालों

की आर्थिक हालत खस्ता रहती है। प्रवेशद्वार के इर्द-गिर्द बाहरी हिस्से में ड्रेनेज पाइप नहीं होने चाहिए।अन्यथा उस मकान में रहनेवालों को दुख उठाना ही पड़ता है। सुख-शांति से वे हमेशा वंचित रहते

हैं। गृहस्थी में आए दिन कोई-न-कोई समस्या सामने आती रहती है।

● भवन की बालकनी पूर्व एवं दक्षिण में हो।

● खिड़कियां पूर्व तथा दक्षिण दिशा में अधिक एवं पश्चिम तथा उत्तर में कम हों।

● पश्चिम तथा दक्षिण की ओर दीवारें चौड़ी हों।

आदर्श मकान कैसा हो ?

रहने के लिए मकान, कार्यालय, व्यापार केंद्र या दुकान, सिनेमा थियेटर, मंदिर, धर्मशाला, होटल-रेस्त्रां आदि का निर्माण आदर्श व सुखदायक हो-इसके लिए वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार निम्न बातों का

ध्यान रखना चाहिए:

● भवन के चारों तरफ खुली जगह हो।

● भूखंड (प्लॉट) के उत्तर में खुली जगह अधिक होनी चाहिए एवं दक्षिण में कम। इसी तरह पूर्व में

ज्यादा खुली जगह अधिक और पश्चिम में कम।

दक्षिण तथा पश्चिम में दरवाजे कम हों तथा उत्तर तथा पूर्व में अधिक।

दक्षिण तथा पश्चिम की चारदीवारी उत्तर एवं पूर्व की अपेक्षा ऊंची हो।

दक्षिण-पूर्व में रसोईघर हो।

उत्तर-पूर्व में पूजा स्थान हो।

स्नानगृह (बाथरूम) पूर्व दिशा में हो।

भवन के दरवाजे और खिड़कियों की संख्या सम हो।

पूर्व या पश्चिम में बरामदा-छज्जे हों। सामान्य रूप में छत की ऊंचाई से बरामदे की ऊंचाई कम हो।

पश्चिम या दक्षिण दिशाओं में बरामदा न हो।